Swati Sharma

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लेखनी कहानी -07-Nov-2022 हमारी शुभकामनाएं (भाग -4)

हमारी शुभकामनाएं:- भाग- 4

अनन्त चतुर्दशी:-

                               जैसा कि हमने पिछली कहानी में अनन्त चतुर्दशी के बारे में सुना था। इस दिन भगवान गणेश जी की प्रतिमा को ससम्मान किसी जलाशय या बगीचे या गमले की मिट्टी में विसर्जित किया जाता है। इस दिन धूम- धाम से बाजे- गाजे के साथ गणेशजी की प्रतिमा को विसर्जित किए जाने वाले स्थान तक ले जाया जाता है और फिर उनका विसर्जन किया जाता है।
                                इतने दिनों की सेवा- पूजा के पश्चात्, आज भूमिका ने भी गणेशजी का विसर्जन करने के बारे में सोचा एवम सम्पूर्ण तैयारी भी की। उसने गणेशजी की प्रतिमा को अपने ही घर के बगीचे में विसर्जित करने की बात मन में ठानी। इसके लिए उसने सभी प्रकार की जानकारी जानकारों से प्राप्त कर ली।
                                अचानक उसे उसके घर के बाहर किसी बाजे की आवाज़ सुनाई दी। वह तुरंत भागकर दरवाज़ पर खड़ी हो गई। उसने देखा एक परिवार कार में एक गणेशजी की प्रतिमा को विसर्जित करने हेतु बैंड- बाजों के साथ जा रहा था। उसको खड़ा देख उस आदमी ने भूमिका को अपने पास बुलाया और प्रसाद दिया। वह प्रसाद ले, झट से घर के भीतर चली आई और सबको प्रसाद वितरित किया।
                                 वह सारा नजारा जिसमें उसने गणेश जी को विसर्जन के लिए जाते देखा तो यकायक उसकी आंख भर आई। उसकी आंखों से छला छल आंसू बहने लगे। वह फूट- फूट कर रोने लगी। उसे ऐसा महसूस होने लगा, जैसे उसका कोई अपना उससे दूर जा रहा हो। वह बहुत दुःखी हुई। करीब 3 घंटे रोने के पश्चात् भी उसका रोना नहीं रुका। फिर जैसे -तैसे अपने आंसुओं को रोकते हुए वह विसर्जन करने उठी। जैसे ही वह प्रतिमा के समीप जाती उसे रोना आता। कुछ देर तक यह सिलसिला यूंही चलता रहा। फिर उसने ख़ुद को संभाला और प्रतिमा विसर्जित करने को तत्पर हुई। उसने अपने परिवार जनों को एकत्रित किया और एक छोटी- सी बाल्टी में पानी भरकर रखा। उसमें एक रुपए का सिक्का डाला, कुछ पुष्प की पंखुड़ियां डाली और दो, दो काजू, बादाम, पिस्ता, मखाने और किशमिश डाल दी। ये सब डालने का मतलब होता है कि जब हम हमारे घरों से किसी मेहमान को विदा करते हैं और वे अपने घर जाने हेतु प्रस्थान करते हैं, तो मार्ग में  उन्हें भूख लगने पर वे उस भोजन को ग्रहण कर सकते हैं। उसी प्रकार गणेशजी को भी जब हम अपने घर से विदा करते हैं, तो उनके खाने के लिए हम भोजन सामग्री उनके साथ देते हैं।
                               भूमिका गणेशजी से वैसे भी बचपन से ही भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई थी। क्योंकि वह उन्हें बचपन से ही अपना भाई मानती आई है। तो उनको विदा करने पर आंसू बहाना तो सहज था। उसे इन 11 दिनों में अपने भाई गणेश जी के साथ बिताए हुए हर पल की याद आ रही थी कि किस प्रकार उसने गणेशजी को मोदक मिष्ठान का भोग लगाया, कैसे वह रोज़ उनकी पूजा करती, उनकी आरती करती। परंतु फिर उसने मन में ठानी कि गणेश जी तो सदैव मेरे हृदय में विद्यमान हैं। सदैव मेरे बड़े भाई की भांति मेरा ख्याल रखते हैं। तो फिर क्यों भला मैं उदास रहूं? 
                                क्यों मैं आसूं बहाऊँ? वैसे भी मां ने उसे सिखाया था कि कभी भी किसी को विदा करते समय रोना नहीं चाहिए। उन्हें खुशी- खुशी विदा करना चाहिए। इस मंगल कामना के साथ कि भी हमारे यहां फिर से पधारें। और कौनसा वो सच में गणेशजी को विदा कर रही है, वे तो सदा उसके साथ हैं। जिसे वह विसर्जित कर विदा कर रही है, वह तो मात्र उनकी एक प्रतिमा है।  उसने मन में यह सब निश्चय कर खुशी- खुशी मोबाइल में ढोल की धुन लगाई, सभी परिवार वालों को एकत्रित किया और गणेशजी की प्रतिमा का विसर्जन किया।

#30 days फेस्टिवल / रिचुअल कम्पटीशन

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8 Comments

Palak chopra

09-Nov-2022 04:02 PM

Shandar 🌸🙏

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Swati Sharma

10-Nov-2022 08:52 PM

Thank you

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Gunjan Kamal

09-Nov-2022 01:29 PM

बहुत खूब

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Swati Sharma

10-Nov-2022 08:52 PM

Thank you

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Mithi . S

09-Nov-2022 10:35 AM

बेहतरीन रचना

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Swati Sharma

09-Nov-2022 11:02 AM

आपका हार्दिक आभार

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